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Monday, July 21, 2008

हमारी महंगाई भी कोई महंगाई है लल्लू?

बढ़ती महंगाई से निजात पाने के लिए जिंबाब्वे का केंद्रीय बैंक सोमवार को १०० अरब डालर का नोट जारी करने जा रहा है। वर्तमान में यहां ५० अरब डॉलर का सबसे बड़ा नोट प्रचलन में है। जिंबाब्बे की मुद्रा भी डॉलर है। सरकारी तौर पर यहां के ३० हजार डॉलर एक अमेरिकी डॉलर के बराबर होते हैं। वैसे एक अमेरिकी डालर लेने के लिए यहां के निवासियों को अपने ८० करोड़ डॉलर खर्च करने पड़ते हैं।

कभी समृद्ध अर्थंव्यवस्थाऒं में गिने जाने वाला अफ्रीकी देश जिंबाब्वे की हालत बीते कुछ सालों से बेहद खराब है। इसके चलते यहां मांस, मक्का, ईधन और अन्य आवश्यक वस्तुऒं की भारी किल्लत है। मुद्रास्फीति की दर यहां २२ लाख फीसदी के ऊपर पहुंच चुकी है। जिंबाब्वे की सेंट्रल बैंक के गवर्नर गिडेन गोनो ने बताया कि इसको देखते हुए १०० अरब डालर का नोट जारी किया जा रहा है। इस नोट के जारी होने से यहां के निवासियों को साधारण खरीदारी के लिए नोटों की गडि्डयां ले जाने के झंझट से निजात मिलेगी। सही मायनों में आसमान पर पहुंची महंगाई के कारण जिंबाब्वे के निवासियों को साधारण टैक्सी के किराए के रूप में भी लाखों डालर का भुगतान करना पड़ता है। इसके लिए वह बैग में नोटों की गडि्डयां भरकर ले जाते हैं।

गोनो ने बताया कि वह बैंकों से रकम निकासी की सीमा बढ़ाने पर विचार कर रहे हैं। फिलहाल इसके लिए १०० अरब डालर की सीमा निर्धारित है। इसके जरिए केवल एक शहर के भीतर बस से दो बार यात्रा की जा सकती है अथवा दो पाव रोटी खरीदी जा सकती हैं। इतनी बड़ी रकम जेब में डालकर बाजारों में घूमने के बदले में जरूरी नहीं कि पाव रोटी मिल ही जाए। खाने-पीने के सामान ढूंढने में काफी वक्त जाया करने वाले जिंबाब्वेवासी धन की निकासी के लिए बैंकों के बाहर भी घंटों कतारबद्ध देखे जा सकते हैं।

इस पोस्ट के लिखे जाते समय १०० अरब जिम्बाब्वे डॉलर की कीमत भारतीय रूपयों में 228.79 रूपये थी।
इस सम्बन्ध में जिम्बाब्वे रिज़र्व बैंक गवर्नर का घोषणापत्र देखिये।

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